कांच मंदिर मध्य प्रदेश के विदिशा के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह माधवगंज चौराहे पर और रेलवे स्टेशन के पास स्थित है । मंदिर के चारो और छोटी छोटी दुकानें बनी हुई हैं। इसलिए दिन भर भीड़ रहती है । जहां सावन माह के आते ही भक्तों की भीड़ लग जाती है । यह विदिशा शहर का केंद्र बिंदु है, जहां मुख्य बाजार समाप्त होता है और पुराने अस्पताल रोड की ओर मुड़ जाता है । कांच मंदिर के सामने राजनीतिक दल धरना प्रदर्शन, पुतला दहन कार्यक्रम करती है। दशहरा के दिन मां दुर्गा की झांकियां निकाली जाती हैं, जिनकी शुरुआत कांच मंदिर से ही होती है । इसी तरह महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की बारात भी कांच मंदिर तक की आती है और यहां से वापस चली जाती है ।
कांच मंदिर विदिशा का इतिहास:
विदिशा के कांच मंदिर को क्यों जीजाबाई की छतरी कहा जाता था, और क्या है इस मंदिर का महत्तव जाने यहां –
यह कांच मंदिर विदिशा शहर के माधवगंज पर स्थित है। सावन का महीना आते ही मंदिर को रोशनी और फूलों से सजाया जाता है। मंदिर के बाहर भगवान शिव के दर्शनों के लिए हर दिन लंबी कतारें लगी रहती है । सावन के सोमवार के दिन भक्त भगवान भोलेनाथ का जल अभिषेक करते हैं।
सिंधिया के पूर्वजों ने रखी इस मंदिर की नींव: आज जहां पर कांच मंदिर स्थित है, वहां पहले एक महिला की प्रतिमा होती थी. वह महिला जीजाबाई थीं. ये माधवराव सिंधिया के पिताजी के पिताजी यानी माधवराव सिंधिया के दादाजी की बहन थीं उनका नाम जीजाबाई था, और इस जगह का नाम बाईसाहब की छतरी रखा गया था. उनके आराध्य के लिए भगवान शंकर की एक प्रतिमा और शिवलिंग यहां रखी गई थी।
इसके बाद 1926 में एडवोकेट विश्वेश्वर नाथ श्रीवास्तव ने यहां एक मंदिर बनवाया, और उस मंदिर के पुजारी पंडित भवानी शंकर आचार्य को ना केवल पुजारी नियुक्त किया, बल्कि इसके दस्तावेज के भी सारे काम दिए। इस दस्तावेज में उन्होंने लिखवाया कि पंडित भवानी शंकर आचार्य के बाद आगे की उनकी पीढ़ियां इस मंदिर की पूजा का कार्य करेगी।
श्री दादाजी मनोकामना पूर्ण सिद्ध श्री हनुमान मंदिर, रंगाई मंदिर विदिशा
शिव मंदिर का नाम कांच मंदिर कैसे हुआ ?
जब मंदिर का दूसरी बार निर्माण हुआ। तब इसमें कांच का इस्तेमाल किया गया। यह उस समय की बात है। जब ग्वालियर राजवंश का राजखत्म हुआ उन्हीं दिनों इस मंदिर में किसी बेल या सांड के आतंक से मंदिर की मूर्तियां खंडित हो गई, फिर जनभागीदारी से 1966 या 1967 के साल में भगवान शंकर की मूर्ति बनवाई गई ।
शिवलिंग बना लेकिन जीजाबाई की प्रतिमा फिर नहीं बनाई गई. 1970 के दशक के शुरुआत में इस मंदिर में कांच का कार्य हुआ और इसके बाद यह मंदिर सजीला दिखने लगा। इस मंदिर का ना केवल महत्व धार्मिक है, बल्कि यह सिद्ध स्थान भी माना जाता है ।
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