विदिशा में स्थित मां ज्वाला देवी शक्तिपीठ की चर्चा दूर-दूर तक है। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है जो अपनी मनोकामना लेकर माता के दरबार में आते हैं और हमेशा प्रसन्न होकर लौटते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर में माता ज्वाला देवी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं? जी हां, यह सच है! आइए जानते हैं इस अद्भुत चमत्कार के पीछे का रहस्य।
करीला माता मंदिर अशोकनगर मध्य प्रदेश
विदिशा के मां ज्वाला देवी शक्तिपीठ: दुर्गा माता मंदिर दुर्गा नगर
विदिशा का मां ज्वाला देवी शक्तिपीठ मध्य प्रदेश का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। नवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां माता ज्वाला देवी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं।
- रात 8:00 बजे से 12:00 बजे तक: इस दौरान माता 35 वर्ष की युवती के रूप में विराजमान रहती हैं।
- दोपहर 12:00 बजे से 4:00 बजे तक: इस समय माता बुजुर्ग के रूप में दर्शन देती हैं।
- शाम 4:00 बजे से 7:00 बजे तक: इस समय माता कन्या के रूप में अपनी भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
माता ज्वाला देवी का चमत्कार:
इस मंदिर में आने वाले भक्तों का मानना है कि यहां माता की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता के तीनों रूपों के दर्शन करने से भक्तों को असीम शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
मंदिर की खासियतें:
- अखंड ज्योत: मंदिर में एक अखंड ज्योत हमेशा जलती रहती है।
- भक्तों की भीड़: नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
- शांत वातावरण: मंदिर का वातावरण बेहद शांत और पवित्र है।
श्री राधा कृष्ण लक्ष्मीनारायण मंदिर, माधवगंज विदिशा
दुर्गा माता मंदिर का इतिहास
पंडित रामेश्वर दयाल, जो सालों से इस मंदिर में दर्शन करते आ रहे हैं, बताते हैं कि दुर्गा नगर कभी घना जंगल हुआ करता था। इस जमीन को महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने एक मुस्लिम जागीरदार को दरगाह के लिए दान दिया था। बाद में, इसी मुस्लिम जागीरदार ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए इसी जमीन को मां ज्वाला देवी मंदिर के निर्माण के लिए दान कर दिया। यह एक अद्भुत उदाहरण है कि धर्म और संस्कृति से ऊपर उठकर कैसे लोगों ने एकता का परिचय दिया। उत्तर प्रदेश के पूर्व सांसद स्वर्गीय मुनव्वर चौधरी सलीम भी यहां नियमित रूप से मन्नत मांगने आते थे।
शरीफ भाई जागीरदार ने दी थी जमीन और कलदार रुपये भी दिये:
सन् 1958 में, विदिशा के दुर्गा नगर क्षेत्र (जिसमें हाजीवली तालाब भी शामिल है) के अधिकांश हिस्से पर एक मुस्लिम जागीरदार, शरीफ भाई का स्वामित्व था। उन्होंने न केवल दुर्गा मंदिर के निर्माण के लिए जमीन दान की, बल्कि निर्माण कार्य के लिए आवश्यक धनराशि भी प्रदान की। स्थानीय लोगों, विशेषकर श्री हरिसिंह सोलंकी के प्रयासों से इस क्षेत्र में एक छोटे से मंदिर का निर्माण हुआ, जहां मां दुर्गा, हनुमानजी और भैरोजी की प्रतिमाएं स्थापित की गईं।
कांच मंदिर विदिशा | विश्वेश्वर महादेव मंदिर
पूजा-पाठ के लिए पीपलखेड़ा गांव के पंडित प्रभु दयाल को आमंत्रित किया गया, जिन्होंने नीमताल क्षेत्र में निवास करते हुए पूजा-अर्चना शुरू की। मंदिर निर्माण के दौरान शरीफ भाई ने 11 चांदी के कलदार रुपये भेंट किए थे, जिन्हें मंदिर की नींव में रखा गया। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में बस्ती बसने लगी और इसे दुर्गा नगर के नाम से जाना जाने लगा। आज यह क्षेत्र विदिशा का एक प्रमुख आवासीय और वाणिज्यिक केंद्र बन चुका है। दुर्गा माता मंदिर विदिशा के दुर्गा नगर चौराहा से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्तिथ है। यह विदिशा का बहुत प्राचीन मंदिर है ।
700 से अधिक दीपक 10 दिनों तक जलते रहते हैं
मां के दरबार में भक्तों की अगाध श्रद्धा का प्रमाण है कि यहां 700 तेल के दीपक और 150 घी के दीपक लगातार 10 दिनों तक जलते रहते हैं। कई दीपक तो साल भर जलते रहते हैं। माता के चरणों में दीपक जलाना भक्तों के लिए एक तपस्या समान है। इस वर्ष लगभग 850 दीपक जलाए गए हैं, जिनमें 11 क्विंटल घी और तेल का उपयोग हुआ है। यह दृश्य मां के प्रति भक्तों के अगाध प्रेम को दर्शाता है।
दुर्गा माता का चमत्कारी मंदिर
ज्वाला देवी मंदिर एक सिद्धपीठ है जहां मां तीन रूपों में विराजमान हैं। यह मंदिर स्वतः जागृत हुआ है और यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 1958 से यहां अखंड ज्योत जल रही है जो अब 1000 से अधिक हो गई हैं। मां की कृपा से विदेशी और हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां लगातार ज्योत जलाते हैं।